
प्रकृति ने रचा खेल करने को मेल
बहुत हुए सजल है अवसर जब मंगल
नियति ना कह दे चल आ तलाशे कोई हल
आपदाओं से घिरा वह पल
पूर्व मनुष्य का जो रहा वितल
अब क्यों याद करें वह कल
जिससे बना मनुष्य विह्वल
यू ंतो प्रकृति सभी की निर्मल
पर शेष अभी है कई विकल्प
कैसे पता लगाएं केवल समय है पल-दो-पल
नियति दृष्टि करती है केवल अपने हल की ओर
किंतु क्या यह पकड़ पाएगी स्थिर प्रज्ञा का कोई छोर।।